क्या बताएं तुम्हें, तुमने क्या कर दिया
मैं तो इक नूर था, और स्याह कर दिया।

ये सितम आपके इस क़दर बढ़ गए
वहशीपन की हदें पार हर कर गए
ज़िन्दगी मौत से भी बुरी हो गई
बन्दगी को भी तुमने बुरा कर दिया।

तुमको औलाद दी, पोस दी-पाल दी
ख़ुद की कोई ज़रूरत थी, वो टाल दी
घर बसाने में हमनें कसर न रखी
अपना हर फ़र्ज़ हमनें अदा कर दिया।

मैं भी इन्सान थी, एक पहचान थी
ग़म छुपाती थी, पर मैं परेशान थी
कहती कैसे बुरा उस इन्सान को
ख़ुद ही जिसको था मैंने, ख़ुदा कर दिया।

तुमसे कोई शिकायत नहीं कर सके
जैसे तुमने रखा वैसे रहते रहे
न कोई मां रही, न कोई बाप था
रिश्ते नातों से ख़ुद को जुदा कर दिया।

प्यार की लौ से ख़ुद को जलाते रहे
आस उम्मीद पर बस निभाते रहे
शोले थे हम, शरारा थे, क्या ख़ूब थे
मिट्टी डाली ग़मों की धुंआ कर दिया।

ख़ुदकुशी कर ही लें, यूं भी सोचा मग़र
रात-दिन रूह से ज़िस्म नोचा मग़र
एक झटके में ख़ुदगरज़ी छोड़ी वहीं
बेबसों ने पुकारा… “माँ” कह दिया।

तेरी-मेरी कहानी, मिलती-जुलती सखी
कितना मैंने सहा, कितना तू सह गई
ये सहारा मिला तो रहा न गया
हाल दिल का फिर आखिर बयां कर दिया।

✍️प्रियलेखा✍️©️

संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्ष 2020 के आंकड़ो के अनुसार विश्व में 137 महिलाओ की हर दिन घरेलू हिंसा के चलते अपने पति या परिवार के सदस्यों द्वारा हत्या की जाती हैं। समय के साथ तथा कोविड के दौरान यह आंकड़े 163 को पार कर गए। घरेलू हिंसा को गम्भीरता से लें।
मेरी यह कविता घरेलू हिंसा से पीड़ित सभी महिलाओ को समर्पित है।

The latest UN figures show that 137 women across the world are killed every day by a partner or member of their own family. With time and during covid these figures crossed 163* Domestic violence is a serious issue
My poem is dedicated to all the victims, survivors and warriors of domestic violence.

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