राममयी दीवाली
दीवाली का आरंभ हुआ श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास से लौटने के पश्चात। राम जिन्होंने जीवन के हर सुख को न केवल सहजता से त्याग दिया अपितु हर दुख और संघर्ष को स्वीकार किया। धर्म और कर्तव्य पालन के लिए हर पीड़ा को सहा। राम ने राजा होकर भी तपस्वियों की भांति जीवन जिया और ऐसा प्रजातंत्र स्थापित किया कि आज भी संसार राम राज्य का उदाहरण देता है।
परन्तु कितनी बड़ी विडम्बना और खेद की बात है कि उन्हीं राम की संतान हम, दीवाली के इस अति पवित्र अवसर को उन तपस्वी राम के स्वागत में नहीं बल्कि भोग विलास में बिता देते हैं। कहीं जुआ, शराब, माँस मच्छी, महंगे उपहारों की होड़ तो कहीं तड़क-भड़क। वास्तव में दीवाली के राम हैं कहां?
दीवाली विलासिता का नहीं अपितु अपने भीतर उन राम के स्वागत का अवसर है जो सरल हैं, मर्यादापुरुषोत्तम हैं, जिनका ऐसे तुच्छ भोग विलासों से कोई संबंध नहीं। हमारे त्योहार हमें उन क्षणों, कर्तव्यों और सम्बन्धों की याद दिलाने आतें हैं, जिन्हें हम भूल गए हैं। प्रण कीजिए और प्रेम से अपने भीतर के राम को आमंत्रित कीजिए। धीरता, गंभीरता व मर्यादा स्वयं ही आ जाएंगी और श्रीराम की दीवाली के नाम पर होने वाला यह आचरण समाप्त हो जाएगा।
रघुपति राघव राजाराम।
पतित पावन सीताराम।।
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